Bamfaad Movie Review: आदित्य रावल उर्फ नासिर जमाल को वेब सिनेमा का आइकॉनिक 'एंग्री यंग मैन' नहीं बना पाती कमजोर कहानी
एक समय था जब बॉलीवुड की हर फिल्म में हीरो विदेश जाता था और वहां अपना प्यार तलाशता था लेकिन अब निर्देशकों को भारत के गांव और छोटे शहर भा रहे हैं और वो धड़ल्ले से यहां की कहानियां कह रहे हैं। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाती है परेश रावल के बेटे Aditya Rawal की हालिया रिलीज फिल्म Bamfaad, जिसे Zee5 पर रिलीज किया गया है।
फिल्म की कहानी:
'बमफाड़' की कहानी उत्तर प्रदेश के 'इलाहबाद' आज के 'प्रयागराज' में सेट की गई है। फिल्म की कहानी की शुरूआत होती है नासिर जमाल उर्फ नाटे (आदित्य रावल) के साथ, जो अपना दिल नीलम (शालिनी पांडे) पर हार बैठता है। नीलम को दिल देते वक्त नासिर जमाल को यह नहीं पता था कि उसकी महबूबा इलाहबाद के मशहूर गुंडे जिगर फरीदी (विजय वर्मा) के रहम-ओ-करम पर जिंदा है। क्योंकि अब नासिर का दिल नीलम पर आ चुका है तो उसे कैसे भी उसे पाना है और वो जिगर फरीदी से लोहा लेने के लिए निकल पड़ता है। इस रास्ते को चुनते ही उसे अपने पक्के दोस्त जाहिद (जतिन सरना) से ऐसा धोखा मिलता है कि उसकी पूरी दुनिया बिखर जाती है। ऐसे में क्या नासिर और नीलम एक हो पाएंगे ? यह आप फिल्म के दौरान देखें तो बेहतर रहेगा।
फिल्म की खासियत:
फिल्म की खासियत इसका स्क्रीनप्ले और देसीपन है, जो लगातार बांधे रखता है। बीते एक साल में कई सारी ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जो उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों की कहानियां कहती नजर आई हैं लेकिन फिर भी 'बमफाड़' प्रभावित करती है।
नासिर जमाल के किरदार में आदित्य रावल छाप छोड़ते हैं और उन्हें स्क्रीन पर उत्तर प्रदेश की भाषा बोलते देख ऐसा नहीं लगता है कि वो अपने पिता परेश रावल की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी अपनी ओरिजनैलिटी है और वो दिल को छू जाती है।
'गली बॉय' फेम विजय वर्मा हर फिल्म के साथ दर्शकों को प्रभावित कर रहे हैं और 'बमफाड़' में भी वो अपने किरदार जिगर भाई से दिल जीतने में कामयाब रहे हैं। वो इलाहबाद के बाहुबली बने हैं, जिसकी पहचान शहर के पुलिसवालों से लेकर एम.एल.ए. तक सभी से है और उन्होंने अपने रौब से सबको खूब डराया भी है लेकिन नासिर जमाल (आदित्य रावल) के साथ उनके सीन्स अलग स्तर पर ही हैं, जिन पर तालियां बजाने का मन करेगा।
'सेक्रेड गेम्स' से मशहूर हुए जतिन सरना 'बमफाड़' में कुछ नया पेश नहीं कर पाए हैं। वो 'सेक्रेड गेम्स' वाले बंटी की तरह ही दिखते हैं। उन्हें आगे से इस बात का ध्यान रखना होगा कि वो एक ही तरह के किरदार न करें।
फिल्म की खामियां:
फिल्म 'बमफाड़' की शुरूआत से ही आपको पता चल जाता है कि डायरेक्टर रंजन चंदेल, अनुराग कश्यप नाम के वायरल फीवर से ग्रसित हैं। फिल्म के सीन्स देखते हुए आपको 'गैग्स ऑफ वासेपुर' और 'गुलाल' की खूब याद आएगी। इसके साथ-साथ 'बमफाड़' कहीं-कहीं पर तिग्मांशु धूलिया की 'हासिल' और नीरज घेवाण की 'मसान' का भी मिक्सचर लगेगी।
आखिरी फैसला:
कई सारी फिल्मों का मिक्सचर होने के बाद भी 'बमफाड़' बोर नहीं करती है। उसके ऊपर से आदित्य रावल और विजय वर्मा की शानदार अदाकारी लगातार बांधे रखती है। ऐसे में इसे एक बार तो जरूर देखा जा सकता है। हालांकि अगर आप वेब सिनेमा के 'एंग्री यंग मैन' नासिर जमाल में 70 के दशक का विजय ढूंढने निकलेंगे तो निराश ही होंगे क्योंकि कमजोर कहानी नासिर जमाल को आइकॉनिक वाला तमगा नहीं दिला पायी है।

फिल्म की कहानी:
'बमफाड़' की कहानी उत्तर प्रदेश के 'इलाहबाद' आज के 'प्रयागराज' में सेट की गई है। फिल्म की कहानी की शुरूआत होती है नासिर जमाल उर्फ नाटे (आदित्य रावल) के साथ, जो अपना दिल नीलम (शालिनी पांडे) पर हार बैठता है। नीलम को दिल देते वक्त नासिर जमाल को यह नहीं पता था कि उसकी महबूबा इलाहबाद के मशहूर गुंडे जिगर फरीदी (विजय वर्मा) के रहम-ओ-करम पर जिंदा है। क्योंकि अब नासिर का दिल नीलम पर आ चुका है तो उसे कैसे भी उसे पाना है और वो जिगर फरीदी से लोहा लेने के लिए निकल पड़ता है। इस रास्ते को चुनते ही उसे अपने पक्के दोस्त जाहिद (जतिन सरना) से ऐसा धोखा मिलता है कि उसकी पूरी दुनिया बिखर जाती है। ऐसे में क्या नासिर और नीलम एक हो पाएंगे ? यह आप फिल्म के दौरान देखें तो बेहतर रहेगा।
फिल्म की खासियत:
फिल्म की खासियत इसका स्क्रीनप्ले और देसीपन है, जो लगातार बांधे रखता है। बीते एक साल में कई सारी ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जो उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों की कहानियां कहती नजर आई हैं लेकिन फिर भी 'बमफाड़' प्रभावित करती है।
नासिर जमाल के किरदार में आदित्य रावल छाप छोड़ते हैं और उन्हें स्क्रीन पर उत्तर प्रदेश की भाषा बोलते देख ऐसा नहीं लगता है कि वो अपने पिता परेश रावल की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी अपनी ओरिजनैलिटी है और वो दिल को छू जाती है।
'गली बॉय' फेम विजय वर्मा हर फिल्म के साथ दर्शकों को प्रभावित कर रहे हैं और 'बमफाड़' में भी वो अपने किरदार जिगर भाई से दिल जीतने में कामयाब रहे हैं। वो इलाहबाद के बाहुबली बने हैं, जिसकी पहचान शहर के पुलिसवालों से लेकर एम.एल.ए. तक सभी से है और उन्होंने अपने रौब से सबको खूब डराया भी है लेकिन नासिर जमाल (आदित्य रावल) के साथ उनके सीन्स अलग स्तर पर ही हैं, जिन पर तालियां बजाने का मन करेगा।
'सेक्रेड गेम्स' से मशहूर हुए जतिन सरना 'बमफाड़' में कुछ नया पेश नहीं कर पाए हैं। वो 'सेक्रेड गेम्स' वाले बंटी की तरह ही दिखते हैं। उन्हें आगे से इस बात का ध्यान रखना होगा कि वो एक ही तरह के किरदार न करें।
फिल्म की खामियां:
फिल्म 'बमफाड़' की शुरूआत से ही आपको पता चल जाता है कि डायरेक्टर रंजन चंदेल, अनुराग कश्यप नाम के वायरल फीवर से ग्रसित हैं। फिल्म के सीन्स देखते हुए आपको 'गैग्स ऑफ वासेपुर' और 'गुलाल' की खूब याद आएगी। इसके साथ-साथ 'बमफाड़' कहीं-कहीं पर तिग्मांशु धूलिया की 'हासिल' और नीरज घेवाण की 'मसान' का भी मिक्सचर लगेगी।
आखिरी फैसला:
कई सारी फिल्मों का मिक्सचर होने के बाद भी 'बमफाड़' बोर नहीं करती है। उसके ऊपर से आदित्य रावल और विजय वर्मा की शानदार अदाकारी लगातार बांधे रखती है। ऐसे में इसे एक बार तो जरूर देखा जा सकता है। हालांकि अगर आप वेब सिनेमा के 'एंग्री यंग मैन' नासिर जमाल में 70 के दशक का विजय ढूंढने निकलेंगे तो निराश ही होंगे क्योंकि कमजोर कहानी नासिर जमाल को आइकॉनिक वाला तमगा नहीं दिला पायी है।
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